राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में लाल किला मेट्रो स्टेशन के पास हुए शक्तिशाली धमाके ने शहर को दहला दिया है। इस आतंकी हमले में कम से कम आठ लोगों की दर्दनाक मौत हुई है और कई अन्य घायल हो गए हैं। घटना की गंभीरता को देखते हुए, केंद्र सरकार ने मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंप दी है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस संबंध में विस्तृत जांच रिपोर्ट तत्काल प्रस्तुत करने के निर्देश जारी किए हैं।
जांच के दौरान कुछ ऐसे तथ्य सामने आए हैं जो इस विस्फोट को अन्य आतंकी वारदातों से अलग बनाते हैं और पाकिस्तान को शक के घेरे में लाते हैं। धमाके के बाद मौके का मुआयना करने वाले विशेषज्ञों ने कई असामान्य बातें नोट कीं। आमतौर पर, किसी भी बड़े धमाके में जमीन पर एक गड्ढा बन जाता है, लेकिन लाल किला के पास हुए इस धमाके में ऐसा कोई गड्ढा नहीं दिखा। धमाके का प्रभाव ऊपर की ओर होने के बजाय जमीन के समानांतर (horizontal) फैला, जिससे एक बड़े क्षेत्र में नुकसान हुआ। साथ ही, धमाके के बाद लगी आग भी काफी तीव्र थी। जिस वाहन में विस्फोट हुआ, वह बुरी तरह जल गया था, लेकिन पूरी तरह नष्ट नहीं हुआ, जो आमतौर पर बड़े आतंकी हमलों में देखने को नहीं मिलता।
इन विशिष्टताओं से यह अनुमान लगाया जा रहा है कि इस धमाके में अमोनियम नाइट्रेट फ्यूल ऑयल (ANFO) जैसे कम तीव्रता वाले विस्फोटक का प्रयोग किया गया था। यह विस्फोटक मिश्रण अक्सर पाकिस्तान से जुड़े आतंकी संगठनों द्वारा इस्तेमाल किया जाता रहा है।
ANFO का निर्माण अपेक्षाकृत सरल है, लेकिन इसे सफलतापूर्वक विस्फोटित करने के लिए विशेष प्रशिक्षण और तकनीक की आवश्यकता होती है। यह केवल प्रशिक्षित आतंकियों के बस की बात है। ऐतिहासिक रूप से, इस प्रकार के विस्फोटक का प्रयोग कुछ ही प्रमुख आतंकी समूहों ने किया है, जिनमें श्रीलंका का LTTE, अफगानिस्तान का तालिबान और पाकिस्तान में सक्रिय ISKP शामिल हैं। LTTE की गतिविधियां अब लगभग बंद हो चुकी हैं, और अफगानिस्तान के साथ भारत के बढ़ते संबंधों को देखते हुए तालिबान द्वारा भारत पर हमला करने की संभावना कम है। इसलिए, ISKP सबसे मजबूत संदिग्ध के तौर पर उभरा है।
खुफिया सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI और ISKP के बीच गहरा संबंध होने के पुख्ता संकेत मिले हैं। ऐसा माना जा रहा है कि पाकिस्तान की सेना और ISI, जैश-ए-मोहम्मद (JeM) और लश्कर-ए-तैयबा (LeT) जैसे अपने पुराने प्यादों के साथ मिलकर ISKP की विस्फोटक विशेषज्ञता का उपयोग कर सकते हैं।
हमले में शामिल संदिग्धों की पृष्ठभूमि भी ISKP के आतंकी मॉड्यूल की ओर इशारा करती है। यह देखा गया है कि इस घटना में शामिल सभी संदिग्ध उच्च शिक्षित डॉक्टर थे, जिनके पास अच्छी तनख्वाह वाली नौकरियां थीं। ISKP अपनी विचारधारा के प्रसार के लिए ऐसे ही पढ़े-लिखे युवाओं को निशाना बनाता है और उन्हें कट्टरपंथी बनाता है। 2019 में श्रीलंका में हुए ईस्टर बम धमाकों से भी इसकी तुलना की जा रही है, जहाँ उच्च शिक्षित और संपन्न परिवारों के व्यक्तियों ने इसी तरह के उर्वरक-आधारित विस्फोटकों का इस्तेमाल किया था। यह पैटर्न एक ही आतंकी नेटवर्क के संचालन की ओर संकेत करता है।
हालांकि यह विस्फोट हाल ही में हुआ है, इसकी योजना काफी समय से चल रही थी। पाकिस्तान में हाल के दिनों में हुई कुछ गतिविधियों से भी आतंकी हमलों की तैयारी के संकेत मिले हैं। 9 नवंबर को ‘जैश-उल-मुमिनात’ नामक एक नए आतंकी संगठन की बैठक होने की खबरें हैं। इससे पहले, पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) के मुजफ्फराबाद और भीमबर में पाकिस्तान सेना, ISI और विभिन्न आतंकी समूहों जैसे LeT, JeM, हिजबुल मुजाहिदीन, तहरीक-उल-मुजाहिदीन और ISKP के बीच महत्वपूर्ण बैठकें आयोजित की गई थीं। इन क्षेत्रों में आतंकी प्रशिक्षण शिविरों को फिर से सक्रिय करने के आदेश भी दिए गए थे, जिससे यह आशंका बढ़ जाती है कि लाल किला पर हमला यहीं से नियोजित किया गया था।
धमाके के समय कार में मौजूद डॉ. उमर नबी की भूमिका भी संदिग्ध है। यह माना जा रहा है कि वे कुछ घंटों से कार में बैठे थे और संभवतः सीमा पार से बैठे अपने आकाओं से निर्देश प्राप्त कर रहे थे। फरीदाबाद और जम्मू-कश्मीर में सक्रिय आतंकी मॉड्यूल पर दबाव बढ़ने और विस्फोटकों के साथ कई डॉक्टरों की गिरफ्तारी के बाद, यह आतंकी नेटवर्क घबराहट में था। ऐसी स्थिति में, पकड़े जाने के डर से डॉ. उमर नबी ने जल्दबाजी में यह हमला किया हो, ऐसी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
