बोर्नियो के हरे-भरे जंगलों में निर्मित हो रही इंडोनेशिया की महत्वाकांक्षी नई राजधानी नुसंतारा, अब एक गंभीर चुनौती का सामना कर रही है – यह एक ‘भूतिया शहर’ बनकर न रह जाए। जकार्ता की भीड़भाड़ और प्रदूषण से निजात पाने के उद्देश्य से शुरू की गई इस परियोजना का भविष्य अनिश्चित नजर आ रहा है। पूर्व राष्ट्रपति जोको विडोडो का लक्ष्य 2030 तक इसे पूरी तरह से चालू करना था।
फिलहाल, नुसंतारा के भव्य निर्माण स्थल पर जीवन की आहट बहुत कम है। विशाल सड़कें खाली हैं, और सरकारी भवनों का निर्माण कार्य अधूरा पड़ा है। कुछ माली और पर्यटकों के अलावा, भविष्य के प्रशासनिक केंद्र में सन्नाटा पसरा हुआ है।
देश के नए राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांतो के सत्ता में आने के बाद से परियोजना को बड़ा झटका लगा है। उनके प्रशासन ने नुसंतारा के लिए सरकारी धन में भारी कटौती की है। 2024 में जहां लगभग 2 अरब ब्रिटिश पाउंड आवंटित किए गए थे, वहीं 2025 के लिए यह राशि घटाकर 700 मिलियन पाउंड कर दी गई है। आगामी वर्ष के लिए केवल 300 मिलियन पाउंड की मंजूरी मिली है, जो मांगी गई राशि का सिर्फ एक तिहाई है। निजी निवेश भी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा है, और 1 अरब पाउंड से अधिक की कमी देखी गई है।
राष्ट्रपति प्रबोवो ने खुद राजधानी का अभी तक दौरा नहीं किया है। मई में, उन्होंने नुसंतारा को इंडोनेशिया की ‘राजनीतिक राजधानी’ घोषित किया था, लेकिन इस निर्णय की घोषणा काफी देरी से हुई।
परियोजना के प्रमुख और उप-प्रमुख दोनों के 2024 में पद छोड़ने से भी इसके भविष्य को लेकर चिंताएं बढ़ी हैं।
वर्तमान में, नुसंतारा में लगभग 2,000 सरकारी कर्मचारी और 8,000 निर्माण श्रमिक कार्यरत हैं। यह 2030 तक 1.2 मिलियन निवासियों के लक्ष्य से बहुत दूर है।
नई राजधानी में ऊंची इमारतें, मंत्रालय, सड़कें, अस्पताल, जलापूर्ति व्यवस्था और एक हवाई अड्डा जैसी बुनियादी सुविधाएं मौजूद हैं, लेकिन अधिकांश हिस्से अभी भी निर्माणाधीन हैं। शिक्षाविदों का मानना है कि परियोजना की दिशा में स्पष्टता की कमी इसके भविष्य पर ग्रहण लगा रही है।
पूर्वी कालीमंतन स्थित मुलावारमन विश्वविद्यालय के संवैधानिक कानून विशेषज्ञ हार्दिकान्स्याह हमजाह ने कहा है कि नुसंतारा की वर्तमान स्थिति ‘भूतिया शहर’ जैसी है। उन्होंने स्पष्ट किया कि ‘राजनीतिक राजधानी’ का दर्जा सिर्फ एक नाम है और यह स्पष्ट है कि राष्ट्रपति प्रबोवो के लिए यह परियोजना अब प्राथमिकता नहीं रही।
दुनिया के सबसे बड़े मुस्लिम बहुल देश की यह भविष्यवादी राजधानी, जो कभी एक उज्ज्वल भविष्य का प्रतीक बनने वाली थी, अब अधूरी और वीरान खड़ी है। इसका भाग्य अनिश्चितता के भंवर में फंसा हुआ है।
