गाजा का पुनर्निर्माण: इजराइल के बजाय, अब अरब देशों के बीच गाजा के भविष्य को लेकर ज़बरदस्त खींचतान चल रही है। जो मुद्दा कभी सिर्फ पुनर्निर्माण की बात थी, वह अब सऊदी अरब, यूएई और कतर के बीच सत्ता की लड़ाई में तब्दील हो गया है। गाजा पट्टी में इन तीनों देशों के हित एक-दूसरे से बिलकुल अलग हैं।
सऊदी अरब और यूएई की नज़र में, गाजा के खंडहर सिर्फ़ मानवीय संकट नहीं हैं, बल्कि पश्चिम एशिया में ताक़त का संतुलन बदलने का एक मौक़ा है। दोनों देशों ने साफ़ कर दिया है कि जब तक हमास अपने हथियार नहीं रख देता और कोई नई, क़ानूनी सरकार सत्ता नहीं संभाल लेती, तब तक एक भी पैसा गाजा में नहीं जाएगा। तब तक इस तबाह इलाके के पुनर्निर्माण में कोई निवेश संभव नहीं है।
दूसरी ओर, कतर ने अपना अलग रास्ता चुना है। वह खुद को गाजा का ‘देखभाल करने वाला’ बता रहा है। जब दुनिया ने आंखें फेर ली थीं, तब कतर ने इस युद्धग्रस्त क्षेत्र के लोगों को खाना खिलाया, उन्हें पनाह दी और उनकी आवाज़ बना। दोहा के अधिकारी फौरन पुनर्निर्माण और मानवीय सहायता की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि देरी से सिर्फ़ लोगों की तकलीफ़ बढ़ेगी और इलाक़े में अस्थिरता फैलेगी। हमास के साथ कतर के पुराने रिश्ते और अमरीका की गुड बुक्स में बने रहने की कोशिश, उसके इस रुख़ की अहम वजहें हैं।
सऊदी अरब और यूएई के लिए यह सिर्फ़ सहायता की बात नहीं है। वे ऐसे इलाक़े में अरबों का निवेश करने से हिचकिचा रहे हैं, जो कभी भी फिर से जंग का मैदान बन सकता है। दोनों देशों में लोगों की राय भी मायने रखती है। हालिया सर्वे में कई सऊदी और अमीराती लोगों ने हमास को अशांति फैलाने वाला चरमपंथी गुट बताया है, न कि प्रतिरोध करने वाला। इस माहौल के कारण रियाद और अबू धाबी और भी ज़्यादा सावधान हो गए हैं।
सऊदी अधिकारी चाहते हैं कि गाजा का नियंत्रण फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण या किसी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्य संस्था को सौंप दिया जाए, तभी पुनर्निर्माण के लिए पैसा जारी होगा। यूएई, जो पहले से ही मानवीय कामों में सक्रिय है, उसने यह भी संकेत दिया है कि वह गाजा में एक अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा दल में शामिल हो सकता है, लेकिन शर्त यह है कि हमास हथियार डाल दे। अबू धाबी फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण में सुधार भी चाहता है, ताकि उसके काम करने के तरीके पर उसकी ज़्यादा पकड़ हो।
कतर की भूमिका इस पूरे समीकरण को और पेचीदा बना रही है। दोहा सालों से हमास नेताओं का मेज़बान रहा है और उसने इज़राइल और हमास के बीच युद्धविराम की मध्यस्थता भी की है। अब उसे अपना प्रभाव कम होने का डर सता रहा है। कतर के राजनयिकों का कहना है कि गाजा के बुनियादी ढांचे के पुनर्निर्माण का इंतज़ार नहीं किया जा सकता। उनका मानना है कि देरी से इलाक़ा और ज़्यादा मुश्किल में फँस जाएगा। वाशिंगटन में उनके इस रुख़ की तारीफ़ हुई है, जहाँ कुछ अधिकारी कतर को एक उपयोगी मध्यस्थ मानते हैं। यहाँ तक कि इज़राइल ने भी, शक़ होने के बावजूद, दोहा की भूमिका को पूरी तरह से ख़ारिज नहीं किया है।
लेकिन रियाद और अबू धाबी को यह मंज़ूर नहीं। उनका मानना है कि कतर का रवैया हमास को और मज़बूत करेगा और उस संगठन को फिर से जान देगा जिसे वे ख़त्म करना चाहते हैं। यह मतभेद तब सामने आया जब सऊदी और अमीराती प्रतिनिधियों ने मिस्र के शर्म अल-शेख में हालिया बैठक में हिस्सा नहीं लिया।
यह दरार अब साफ़ दिख रही है। जो गाजा कभी इज़राइल के ख़िलाफ़ अरब एकता का प्रतीक था, वह अब अरब देशों की आपसी फूट का आईना बन गया है। और जैसे-जैसे उसके लोग मदद का इंतज़ार कर रहे हैं, यह सवाल खड़ा होता है कि क्या कोई बीच का रास्ता निकल पाएगा, या गाजा का भविष्य उन लोगों की रस्साकशी में फँसा रहेगा जो उसे बचाने का दावा करते हैं।
