तुर्की की मध्यस्थता में इस्तांबुल में आयोजित पाकिस्तान-अफगानिस्तान शांति वार्ता तीन दिनों के बाद गंभीर गतिरोध में फंस गई है। दोनों देश एक-दूसरे पर बातचीत को आगे न बढ़ने देने का आरोप लगा रहे हैं। वार्ता का मुख्य केंद्र बिंदु पाकिस्तान द्वारा अफगानिस्तान से उत्पन्न होने वाले आतंकवादी हमलों के खिलाफ सुरक्षा आश्वासन की मांग है, जिसे काबुल स्वीकार करने में हिचकिचा रहा है। इस गतिरोध ने हाल ही में घोषित युद्धविराम की स्थिरता पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगा दिया है।
**सुरक्षा गारंटी पर मतभेद**
पाकिस्तानी सूत्रों के अनुसार, वार्ता इस बात पर अटक गई है कि क्या अफगानिस्तान पाकिस्तान के खिलाफ अपने क्षेत्र का उपयोग नहीं करने की ठोस और सत्यापन योग्य गारंटी देगा। उनका कहना है कि पाकिस्तान की मांगें जायज हैं, लेकिन तालिबान प्रतिनिधिमंडल काबुल से निर्देश लिए बिना कोई अंतिम निर्णय लेने में असमर्थ है।
इसके विपरीत, अफगान पक्ष का कहना है कि उन्होंने रचनात्मक बातचीत के लिए हर संभव प्रयास किया, लेकिन पाकिस्तान का रवैया सहयोगपूर्ण नहीं रहा। अफगान मीडिया ने पाकिस्तान पर जानबूझकर प्रगति में बाधा डालने का आरोप लगाया है।
**युद्धविराम की नाजुक स्थिति**
यह वार्ता हाल के महीनों में दोनों देशों के बीच बढ़ी सीमा पार झड़पों और एक-दूसरे पर उग्रवादियों को पनाह देने के आरोपों के मद्देनजर तनाव कम करने के बड़े प्रयासों का एक हिस्सा है। 19 अक्टूबर को दोहा में संपन्न हुआ युद्धविराम, जिसमें दोनों पक्षों के कई लोग मारे गए थे, अभी भी लागू है, लेकिन इस्तांबुल में वार्ता की विफलता ने इसके भविष्य पर अनिश्चितता के बादल मंडरा दिए हैं।
तुर्की और अन्य अंतरराष्ट्रीय साझेदार युद्धविराम को बनाए रखने और बातचीत को पटरी पर लाने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं, लेकिन जमीनी हकीकत अभी भी चिंताजनक बनी हुई है।
**बढ़ता आतंकवाद और व्यापार पर असर**
विशेषज्ञों का मानना है कि अफगानिस्तान द्वारा तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) जैसे समूहों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई न करना ही मूल समस्या है। इस्लामाबाद का दावा है कि 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से टीटीपी आतंकवादियों ने अफगानिस्तान में सुरक्षित पनाहगाह बना ली है, जिसके कारण पाकिस्तान में हमलों की संख्या बढ़ी है।
इस महीने की शुरुआत में पाकिस्तान द्वारा अफगानिस्तान में टीटीपी ठिकानों पर कथित हवाई हमलों के बाद दोनों देशों के बीच सैन्य तनाव बढ़ गया था, जिसे बाद में कतर के हस्तक्षेप से शांत कराया गया।
इस बीच, दोनों देशों के बीच प्रमुख सीमा चौकियां दो सप्ताह से अधिक समय से बंद हैं, जिससे व्यापार पूरी तरह से ठप है और सैकड़ों ट्रक अपनी सामग्री के साथ फंसे हुए हैं। यह स्थिति दोनों देशों के बीच गहरे अविश्वास और अस्थिरता को दर्शाती है।
