पाकिस्तान की सेना गंभीर संकट से जूझ रही है, जहाँ उसके जवान आतंकवादी संगठनों और अलगाववादी समूहों की ओर आकर्षित हो रहे हैं। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) और बलूच अलगाववादी संगठन इन सैनिकों को लुभाने में सफल हो रहे हैं, जिससे पाकिस्तान की आंतरिक सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
हाल ही में खैबर पख्तूनख्वा के अकाखेल ख्वंगी में हुए आतंकवादी हमले ने इस चिंताजनक प्रवृत्ति को उजागर किया है। टीटीपी आतंकवादियों ने छह पाकिस्तानी सैनिकों को बेरहमी से मार डाला, जबकि कई अन्य घायल हुए और लापता हो गए। सेना इस बात की जांच कर रही है कि क्या लापता जवान अपहृत हुए हैं या उन्होंने खुद ही सेना छोड़ दी है। टीटीपी ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है और उन सैनिकों की तस्वीरें भी जारी की हैं जो अब उनके साथ हैं।
अहमद काज़िम, एक पूर्व पाकिस्तानी लांस नायक, टीटीपी में शामिल होकर सेना के खिलाफ हमलों का नेतृत्व कर रहा है। अपनी सैन्य प्रशिक्षण का उपयोग करते हुए, काज़िम ने सेना के ठिकानों पर सुनियोजित हमले किए हैं। पाकिस्तानी सरकार ने उसे पकड़ने के लिए 10 करोड़ रुपये का इनाम रखा है।
विश्लेषकों के अनुसार, सैनिकों के सेना छोड़ने के पीछे मुख्य कारण आर्थिक और वैचारिक हैं। आतंकवादी समूह नशीले पदार्थों, अपहरण और वसूली जैसे अवैध धंधों से भारी मुनाफा कमाते हैं, जिसका एक हिस्सा वे नए सदस्यों को अच्छी रकम के रूप में देते हैं। दूसरी ओर, पाकिस्तानी सेना का वेतन इन आकर्षक प्रस्तावों की तुलना में काफी कम है। इसके अतिरिक्त, 1980 के दशक की राज्य-प्रायोजित जिहाद की विचारधारा और वर्तमान इस्लामी उग्रवाद का प्रभाव भी कुछ सैनिकों को इन समूहों की ओर खींच रहा है।
बलूचिस्तान में भी अलगाववादी गतिविधियाँ तेज हो गई हैं। हाल की रिपोर्ट्स के अनुसार, बड़ी संख्या में सैनिकों और अधिकारियों ने खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान में इस्तीफे दिए हैं। इस स्थिति का फायदा उठाकर बलूच अलगाववादियों ने केच जिले के बहाघ नारी जैसे महत्वपूर्ण इलाकों पर नियंत्रण कर लिया है, और सेना को अपनी चौकियों को खाली करना पड़ा है।
पाकिस्तान की सेना का इतिहास भी बड़े पैमाने पर आत्मसमर्पण और सैन्य नुकसान से भरा रहा है, जैसे कि 1971 में बांग्लादेश युद्ध के दौरान और दक्षिण वजीरिस्तान में। हाल ही में अफगान तालिबान के साथ सीमा पर हुई झड़पों में भी पाकिस्तान को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। अफगान सरकार ने भी पाकिस्तान को चेतावनी दी है कि काबुल के खिलाफ किसी भी सैन्य कार्रवाई के गंभीर परिणाम होंगे।
इन सब के बीच, सेवानिवृत्त पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी भारत के खिलाफ परमाणु हमले जैसी धमकियां दे रहे हैं, जबकि भारत अपनी पश्चिमी सीमाओं पर ‘त्रिशूल’ नामक सैन्य अभ्यास कर रहा है। सैनिकों के लगातार पलायन और बढ़ते आतंकवादी हमलों ने पाकिस्तान की सेना की परिचालन क्षमता और मनोबल पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगा दिए हैं।
