नई दिल्ली: भारत और अमेरिका के बीच एक बड़ा व्यापारिक समझौता आकार लेने वाला है, जिससे भारतीय सामानों पर अमेरिकी आयात शुल्क में जबरदस्त कमी आने की उम्मीद है। वर्तमान में, अमेरिका कई भारतीय वस्तुओं पर औसतन 50% तक का भारी शुल्क लगाता है। इस समझौते के पूरा होने पर, यह दर घटकर लगभग 15-16% तक आ सकती है, जो भारतीय निर्यात उद्योग के लिए एक बड़ी संजीवनी साबित होगी। यह समझौता, जो काफी समय से रुका हुआ था, अब ऊर्जा और कृषि क्षेत्र में बढ़ते सहयोग की वजह से तेजी से आगे बढ़ रहा है।
मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन ने हाल ही में कोलकाता में कहा कि वे इस मुद्दे के जल्द समाधान को लेकर आशावादी हैं। उन्होंने संकेत दिया कि अगले कुछ महीनों के भीतर, जो 25% अतिरिक्त शुल्क भारत पर लगाए गए हैं, उनमें कमी देखी जा सकती है। यह भारतीयों निर्यातकों के लिए एक बड़ी राहत होगी, जो इन शुल्कों के कारण पिछले कुछ समय से मुश्किलों का सामना कर रहे थे। नागेश्वरन ने बताया कि आयात-निर्यात पर लगाए गए शुल्कों को लेकर बातचीत चल रही है और उम्मीद है कि ये शुल्क भी 15-16% की वांछित सीमा तक आ जाएंगे।
यह एक ऐसा कदम होगा जिसका भारतीय व्यापार जगत बेसब्री से इंतजार कर रहा है। 2024-25 वित्तीय वर्ष में, भारत ने अमेरिका को 86.51 अरब डॉलर का निर्यात किया, जो भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाजार है। नागेश्वरन ने यह भी स्पष्ट किया कि चालू वर्ष में इन शुल्कों का बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि भारत ने पहले ही पर्याप्त मात्रा में निर्यात कर लिया था। हालांकि, यदि ये उच्च शुल्क जारी रहते, तो अगले वर्ष निर्यात में 30% तक की गिरावट आ सकती थी, जो भारत की अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा झटका होता, क्योंकि निर्यात उसके सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का लगभग 25% है। यह व्यापार समझौता इस संभावित खतरे को टाल सकता है।
इस संभावित सौदे के मूल में ऊर्जा सहयोग का एक महत्वपूर्ण स्थान है। रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत अमेरिका के साथ अपने आर्थिक संबंधों को मजबूत करने के लिए रूस से कच्चे तेल का आयात धीरे-धीरे कम कर सकता है। दरअसल, रूस से बढ़ा हुआ तेल आयात ही अमेरिका द्वारा 25% अतिरिक्त शुल्क लगाने का एक मुख्य कारण था। वर्तमान में, भारत अपने कच्चे तेल का लगभग 34% रूस से और लगभग 10% अमेरिका से आयात करता है।
इस समझौते के तहत, भारत इथेनॉल के आयात की अनुमति दे सकता है और रूस से कच्चे तेल की खरीद में कटौती कर सकता है। इसके बदले में, अमेरिका से ऊर्जा क्षेत्र में व्यापार संबंधी रियायतें मिलने की उम्मीद है। भारत की सरकारी तेल कंपनियां अमेरिका से भी कच्चे तेल की खरीद शुरू कर सकती हैं। हाल के आंकड़ों से पता चलता है कि रूसी तेल और अन्य अंतरराष्ट्रीय बेंचमार्क तेलों के बीच मूल्य का अंतर काफी कम हो गया है, जो 2023 में $23 प्रति बैरल था, वह अब घटकर केवल $2-2.50 प्रति बैरल रह गया है। इससे अमेरिका और मध्य पूर्व से आयात करना अधिक आकर्षक हो गया है।
यह व्यापारिक समझौता कृषि क्षेत्र को भी प्रभावित करेगा। भारत अमेरिकी निर्यादकों के लिए गैर-जीएमओ मक्का और सोयाबीन खली जैसे उत्पादों के लिए अपने बाजार खोल सकता है। अमेरिकी निर्यादकों के लिए यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि चीन ने हाल ही में मक्का का अपना आयात भारी मात्रा में घटा दिया है (2022 में $5.2 बिलियन से 2024 में $331 मिलियन)। ऐसे में भारत अमेरिकी कृषि उत्पादों के लिए एक बड़ा बाजार बन सकता है।
हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच हुई फोन बातचीत में ऊर्जा व्यापार पर मुख्य रूप से चर्चा हुई। राष्ट्रपति ट्रम्प ने बाद में दावा किया कि प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें रूस से तेल की खरीद को सीमित करने का आश्वासन दिया है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस बातचीत को “रचनात्मक” बताया, लेकिन उन्होंने विस्तृत जानकारी नहीं दी। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर अमेरिकी राष्ट्रपति के इस कदम की सराहना की।
माना जा रहा है कि इस व्यापार समझौते की औपचारिक घोषणा आसियान शिखर सम्मेलन के दौरान हो सकती है, जो इसी महीने आयोजित होने वाला है। हालांकि, इस संबंध में अभी तक सरकार की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।
अगर यह समझौता सफल होता है, तो यह भारत और अमेरिका के बीच व्यापार संबंधों में एक युगांतरकारी परिवर्तन लाएगा, जिससे टैरिफ दरें कम होंगी, कृषि व्यापार को बढ़ावा मिलेगा और दोनों देशों के बीच ऊर्जा क्षेत्र में एक नई साझेदारी का सूत्रपात होगा।