चीन की परमाणु शक्ति का अभूतपूर्व विस्तार चिंता का विषय बन गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि बीजिंग अब परमाणु हथियारों का इस्तेमाल ‘ब्लैकमेल’ करने के इरादे से कर रहा है, खासकर उन देशों के खिलाफ जो उसके क्षेत्रीय दावों पर सवाल उठाते हैं, जिसमें भारत भी शामिल है।
**बीजिंग का परमाणु शक्ति प्रदर्शन**
हाल ही में हुए एक महत्वपूर्ण सैन्य प्रदर्शन के दौरान, चीन ने अपनी उन्नत मिसाइलों का प्रदर्शन किया। इनमें हवा से लॉन्च होने वाली जेएल-1, पनडुब्बी से लॉन्च होने वाली जेएल-3 और सतह से सतह पर मार करने वाली डीएफ-61 मिसाइलें शामिल हैं। इन मिसाइलों को चीन की नई ‘न्यूक्लियर ट्राइड’ का हिस्सा माना जा रहा है, जो परमाणु हथियारों को हवा, जमीन और समुद्र, तीनों माध्यमों से लॉन्च करने की क्षमता प्रदान करती है।
यह केवल सैन्य आधुनिकीकरण का मामला नहीं है, बल्कि यह परमाणु बल के उपयोग की दिशा में एक गंभीर कदम है। चीन ने अब हवाई परमाणु हमले की क्षमता हासिल कर ली है, जिससे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र और उसके पड़ोसियों के लिए खतरा बढ़ गया है।
**ताइवान पर चीन की परमाणु रणनीति**
विशेषज्ञों का मानना है कि ये परमाणु हथियार केवल आत्मरक्षा के लिए नहीं, बल्कि चीन को पारंपरिक युद्ध लड़ने और संभावित अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप को रोकने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। चीन का मुख्य लक्ष्य ताइवान है, जिसे वह अपना अभिन्न अंग मानता है और यदि आवश्यक हुआ तो सैन्य बल से मिलाने को तैयार है।
अगर अमेरिका ताइवान की रक्षा के लिए हस्तक्षेप करता है, तो चीन अपने सामरिक परमाणु हथियारों का उपयोग करके अमेरिकी सेनाओं को चेतावनी दे सकता है। यह एक ऐसा दांव है जहां बीजिंग यह दिखाना चाहता है कि वह ताइवान के लिए किसी भी हद तक जा सकता है, जिसमें परमाणु हथियारों का इस्तेमाल भी शामिल है।
एमआईटी के एक शोधकर्ता, एरिक हेगिनबोथम के अनुसार, डीएफ-26 जैसी सामरिक परमाणु मिसाइलें चीन को अधिक प्रभावी निवारक क्षमता प्रदान करती हैं। इससे चीन को यह विश्वास मिलता है कि वह ताइवान पर पारंपरिक कार्रवाई कर सकता है, जबकि अमेरिका से परमाणु जवाबी कार्रवाई का जोखिम कम होगा।
**रूस से मिली ‘परमाणु डराने’ की सीख**
सिक्योर ताइवान एसोसिएट कॉर्पोरेशन के अध्यक्ष यांग ताई-युआन ने यह आशंका जताई है कि चीन ने यूक्रेन युद्ध से रूस के परमाणु खतरों से बहुत कुछ सीखा है। रूस के परमाणु धमकियों ने पश्चिमी देशों को सीधे तौर पर हस्तक्षेप करने से रोका था, जबकि यूक्रेन को भारी सैन्य सहायता मिल रही थी।
यांग ने आगाह किया है, “चीनी कम्युनिस्ट पार्टी रूस से परमाणु डराने की कला सीख सकती है और अपने क्षेत्रीय विवादों में शामिल होने वाले बड़े देशों को सामरिक परमाणु हथियारों से धमकी दे सकती है, जैसा कि ताइवान जलडमरूमध्य में देखा जा सकता है।”
**तानाशाही के लिए परमाणु हथियारों का खतरा**
यह स्थिति केवल ताइवान या एशिया-प्रशांत क्षेत्र के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह एक वैश्विक चुनौती है। यदि परमाणु हथियारों के बल पर तानाशाह पारंपरिक हमले करते हैं और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को रोक पाते हैं, तो यह एक खतरनाक मिसाल बनेगी। भारत के लिए भी यह एक गंभीर चिंता का विषय है। चीन का बढ़ता परमाणु जखीरा उसे बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के भारत जैसे पड़ोसियों को धमकाने की शक्ति प्रदान करता है।