झारखंड पुलिस के कामकाज के तरीके पर नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने तीखा हमला बोला है। उन्होंने पुलिस मुख्यालय के फैसलों पर सवाल उठाते हुए कहा कि राजधानी रांची में एसएसपी, डीआईजी और आईजी जैसे वरिष्ठ अधिकारी होने के बावजूद, एक गंभीर आपराधिक मामले की जांच का कार्य पुलिस डीआईजी (बजट) को सौंपना हास्यास्पद है। यह मामला रांची के गोंदा और नामकुम थानों से जुड़ा है, जिसकी आवेदक खुशी तिवारी ने शिकायत की थी।
मरांडी ने सवाल उठाया कि क्या डीजीपी के लिए रांची में पदस्थ अधिकारी इतने नाकाबिल हैं कि उन्हें वित्तीय मामलों को देखने वाले डीआईजी से जांच करवानी पड़ रही है? यह न केवल पुलिस बल की कमजोरी को दर्शाता है, बल्कि यह स्थापित नियमों की भी घोर अवहेलना है।
उन्होंने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि एक तरफ, महिला आरक्षियों को उनके प्रशिक्षण से हटकर थानों में क्लर्क का गैर-कानूनी काम दिया जा रहा है। इसके कारण आईआरबी/जैप बटालियनों का 15% से अधिक बल गैर-हथियारधारी ड्यूटी पर लगा हुआ है। वहीं दूसरी तरफ, एक संवेदनशील मामले की समीक्षा का काम बजट विभाग को सौंप दिया गया है। मरांडी ने जोर देकर कहा कि अगर रांची के वरिष्ठ अधिकारी जांच जैसे महत्वपूर्ण कार्य भी नहीं कर सकते, तो उन्हें उनके पदों से हटा देना उचित होगा।
उन्होंने आशंका जताई कि कहीं भविष्य में जैप के अन्य जवानों को भी कानून-व्यवस्था संभालने के बजाय हिसाब-किताब का काम न सौंप दिया जाए। इससे तब समस्या होगी जब केंद्र सरकार को चुनाव या अन्य ड्यूटी के लिए अतिरिक्त बल की आवश्यकता होगी और राज्य सरकार ‘असुविधा’ का हवाला देगी। यह स्थिति ‘अंधेरगर्दी’ को दर्शाती है। मरांडी ने आरोप लगाया कि पुलिस विभाग में नियम-कानून का कोई पालन नहीं हो रहा है। संवैधानिक कायदों और अखिल भारतीय पुलिस सेवा के नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, जैसा कि एक रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी द्वारा वर्दी पहनकर डीजीपी पद संभालने से स्पष्ट है।