बांग्लादेश एक बार फिर अशांति की कगार पर खड़ा दिख रहा है। अंतरिम सरकार द्वारा अगले साल की शुरुआत में चुनाव कराने के वादे के बावजूद, देश की स्थिति दिनों-दिन बिगड़ती जा रही है। कई पर्यवेक्षकों का मानना है कि कट्टरपंथी ताकतें तेजी से मजबूत हो रही हैं और देश की दिशा पर उनका प्रभाव बढ़ रहा है।
मुख्य विपक्षी दल, बीएनपी, भी वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य से खुश नहीं है। पार्टी नेताओं को इस बात पर भी संदेह है कि क्या वास्तव में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव हो पाएंगे, या चुनाव होंगे भी या नहीं। हालांकि उम्मीद है कि राजनीतिक वर्ग राष्ट्रीय हित को देखते हुए अपने मतभेदों को दूर कर लेगा, लेकिन छात्रों और अंतरिम सरकार के सलाहकारों के बीच बढ़ता गतिरोध एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है।
अप्रैल 2024 में छात्रों के आंदोलन ने सत्ता परिवर्तन में अहम भूमिका निभाई थी। अब, देश का भविष्य छात्रों और अंतरिम सरकार के सलाहकारों के बीच के टकराव पर टिका है।
अप्रैल के आंदोलन के बाद उभरे छात्रों के समूह ने नेशनल सिटीजन पार्टी (एनसीपी) का गठन किया है। उन्होंने 2026 के मध्य तक होने वाले संभावित चुनावों में हिस्सा लेने की बात कही है। एनसीपी के कई सदस्य डॉ. मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार के कुछ सलाहकारों पर बहुत संदेह कर रहे हैं। उनका मानना है कि ये सलाहकार राजनीतिक दलों के साथ सांठगांठ कर रहे हैं ताकि सरकार से सुरक्षित निकास सुनिश्चित किया जा सके। शुरुआत में यह आरोप थोड़ा कमजोर लग रहा था, लेकिन एनसीपी के एक प्रमुख नेता सरजिस आलम ने चेतावनी दी है कि सलाहकारों के लिए केवल मौत ही एकमात्र रास्ता बचा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह स्थिति किसी बड़े उथल-पुथल का संकेत दे रही है। यह नेपाल में हुए घटनाक्रम जैसा हो सकता है, और यदि एनसीपी के नेतृत्व में छात्र फिर से सड़कों पर उतर आते हैं, तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा।
इसके अलावा, पाकिस्तान की आईएसआई भी बांग्लादेश में सक्रिय भूमिका निभा रही है। आईएसआई, जमात-ए-इस्लामी जैसे समूहों का उपयोग कर बांग्लादेश में अस्थिरता फैलाने की कोशिश कर रही है। आईएसआई के लिए, एक अशांत बांग्लादेश भारत के लिए सुरक्षा चिंताएं पैदा करेगा, जो उसके हित में है।
आईएसआई की नजर हमेशा भारत पर रहती है। आतंकी समूहों को समर्थन देने के साथ-साथ, वह बांग्लादेश में अराजकता को बढ़ावा देना चाहती है।
छात्र नेता अंतरिम सरकार के कुछ सदस्यों को लेकर और भी अधिक आशंकित हो गए हैं। उन्हें लगता है कि ये सलाहकार अपने भविष्य को सुरक्षित करने के लिए राजनीतिक दलों के साथ मिल गए हैं। वे सत्ता में बने रहने के सुख का आनंद लेना चाहते हैं और चुनाव के बाद भी इसे जारी रखना चाहते हैं।
एनसीपी के छात्र नेताओं को लगता है कि अंतरिम सरकार ने अपने वादों को पूरा करने में अपेक्षित सफलता नहीं पाई है। उन्हें उम्मीद थी कि सत्ता परिवर्तन के बाद देश में शांति और सुशासन स्थापित होगा, जो देश को आगे ले जाएगा।
लेकिन, अप्रैल के आंदोलन और डॉ. यूनुस के सत्ता संभालने के बाद से, बांग्लादेश लगातार नकारात्मक खबरों में रहा है। देश में कट्टरपंथ बढ़ा है, इस्लामी कट्टरपंथियों का प्रभाव बढ़ा है, अर्थव्यवस्था कमजोर हुई है, आईएसआई का दखल बढ़ा है, और अल्पसंख्यकों पर अत्याचार में वृद्धि हुई है।
एनसीपी चुनाव कराने की मांग कर रही है। हालांकि, अब उन्हें इस बात पर भी संदेह है कि क्या जमात सहित सत्ता में बैठे लोग वास्तव में चुनाव कराने के इच्छुक हैं।
और यदि चुनाव हो भी जाते हैं, तो उनकी निष्पक्षता पर भी प्रश्नचिन्ह है। यह चिंता केवल एनसीपी तक सीमित नहीं है, बल्कि आम जनता में भी फैल गई है। कई लोगों ने कहा है कि वे ऐसे चुनाव में भाग नहीं लेंगे जो निष्पक्ष न हो। ये सभी संकेत स्पष्ट रूप से इशारा करते हैं कि देश एक और बड़े आंदोलन की कगार पर है।