बागबान: रवि चोपड़ा द्वारा निर्देशित इस फिल्म में अमिताभ बच्चन ने एक यादगार भूमिका निभाई है। यह फिल्म एक पुराने जमाने के पारिवारिक नाटक की तरह है जिसमें भावनात्मक मूल्य गहराई से जुड़े हैं। फिल्म में बच्चन साहब की भूमिका, कहानी को एक खास अंदाज़ देती है जो अक्सर ऐसी कहानियों में नहीं मिलती। फिल्म का मुख्य आकर्षण बच्चन साहब की शानदार अदाकारी है, जो कहानी को एक विशेष पहचान देती है।
फिल्म में गाने और डांस काफी शानदार हैं, और कहानी में भावनात्मक गहराई है, जो बच्चन साहब के अभिनय से और भी मजबूत होती है।
फिल्म में पारिवारिक रिश्तों की कहानी है, जिसमें माता-पिता और बच्चों के बीच की भावनाओं को दिखाया गया है। कहानी में पत्तियों की सरसराहट, बारिश की बूंदें, और टूटे हुए सपनों के दृश्य रवि चोपड़ा की शानदार निर्देशन क्षमता को दर्शाते हैं।
बागबान में बच्चों द्वारा बूढ़े माता-पिता को बोझ समझने की बात को उठाया गया है। यह सवाल भी उठाया गया है कि क्या माता-पिता को ऐसी स्थिति में निराशा में चले जाना चाहिए, या वे अपने जीवन को खुशहाल बनाने का प्रयास कर सकते हैं?
फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे बच्चे अपने माता-पिता को वृद्धावस्था में बोझ समझने लगते हैं, और इस बात पर भी जोर दिया गया है कि माता-पिता को ऐसी स्थिति में निराश नहीं होना चाहिए, बल्कि अपने जीवन को खुशहाल बनाने का प्रयास करना चाहिए।
फिल्म में अमिताभ बच्चन और हेमा मालिनी के बीच का रिश्ता बहुत ही प्यारा है। हेमा मालिनी ने एक पीड़ित माँ की भूमिका निभाई है, और दोनों की जोड़ी ने फिल्म को और भी खास बना दिया है।
फिल्म के गाने जैसे ‘होली खेले रघुवीरा’, ‘चली चली’, और ‘मेरी मखना’ बहुत ही शानदार हैं। ये गाने बच्चन साहब के फिल्मी करियर के सबसे यादगार पलों में से एक हैं।
अमिताभ बच्चन ने फिल्म में हल्के-फुल्के और गंभीर दोनों तरह के दृश्यों को बखूबी निभाया है। उन्होंने रिटायरमेंट के बाद राज मल्होत्रा की भूमिका में अपने अभिनय से दर्शकों को भावुक कर दिया। फिल्म में एक सीन है जब वह अपनी पत्नी से फोन पर बात करते हैं, जो दर्शकों को बहुत पसंद आया।
फिल्म में बच्चन साहब के अभिनय की प्रशंसा की गई है, लेकिन कुछ कमियाँ भी हैं, जैसे कहानी में कुछ अतिनाटकीय दृश्य और प्लॉट में कुछ विरोधाभास।
फिल्म में परेश रावल और लिलेट दुबे ने भी शानदार अभिनय किया है। सलमान खान ने भी एक ऐसे बेटे की भूमिका निभाई है जो अपने माता-पिता को दुख से बाहर निकालने के लिए वापस आता है।
फिल्म में कुछ सहायक कलाकारों के किरदार रूढ़िवादी थे, लेकिन कुल मिलाकर यह एक यादगार फिल्म है।
फिल्म के अंत में, पोते का दादाजी से यह कहना कि ‘कभी इस घर वापस मत आना’ दर्शकों को भावुक कर देता है।
बागबान आज भी दर्शकों को परिवार के महत्व को याद दिलाता है।