लेखक के अनुसार, जब वह कोलकाता में ‘जनसत्ता’ के संपादक थे, तो दशहरा से पहले योगेश आहूजा नामक एक व्यक्ति राम लीला करवाने के लिए उनसे मदद मांगने आए। आहूजा चाहते थे कि ब्रिगेड मैदान में राम लीला का मंचन हो, लेकिन सीमित समय में राम के जन्म से लेकर रावण दहन तक की पूरी कहानी प्रस्तुत करना असंभव था। हालाँकि, आहूजा के ज़ोर देने पर, और सुभाष चक्रवर्ती के समर्थन से, राम कथा को संक्षिप्त करने पर सहमति बनी।
सुभाष चक्रवर्ती, जो पश्चिम बंगाल सरकार में मंत्री थे, और सैयद महफूज़ हसन खां पुंडरीक को राम लीला की नाटिका लिखने के लिए कहा गया। पुंडरीक, जो राम कथा के जानकार थे, ने राम विवाह से शुरू करके रावण वध पर लीला समाप्त करने का सुझाव दिया, जिससे चार घंटे में कहानी प्रस्तुत की जा सके।
राम लीला का मंचन सफल रहा, जिसमें कई गणमान्य व्यक्ति शामिल हुए। इस कार्यक्रम का उद्देश्य समाज में सांस्कृतिक विविधता को दर्शाना था, क्योंकि राम लीला मुख्य रूप से उत्तर भारत तक ही सीमित है, जबकि अन्य क्षेत्रों में दुर्गा पूजा जैसे त्योहार मनाए जाते हैं।
लेख में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि रावण दहन की परंपरा केवल उत्तर भारत तक सीमित है। विजयादशमी के दिन शस्त्र पूजन किया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। हालांकि, राम के चरित्र के महत्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान देने की ज़रूरत है।
लेखक राम के चरित्र की उदारता और शत्रुतापूर्ण परिस्थितियों में मित्र बनाने की क्षमता पर प्रकाश डालते हैं। उन्होंने बताया कि कैसे राम ने वंचितों के साथ सहानुभूति दिखाई, जैसे शबरी के जूठे बेर खाना।
लेखक इस बात पर भी ज़ोर देते हैं कि हमें राम के उन पहलुओं को अपनाना चाहिए जो आज भी प्रासंगिक हैं, जबकि उनके कुछ विचारों को चुनौती देने की आवश्यकता है।
राम का चरित्र एक भगवान के रूप में उनकी मर्यादा को दर्शाता है। उन्होंने हमेशा दूसरों से सलाह ली, यहाँ तक कि रावण के भाई विभीषण को शरण देने पर भी।
महर्षि वाल्मीकि ने राम को इक्ष्वाकु वंश में पैदा हुए धैर्यवान, तेजस्वी और जितेंद्रिय के रूप में वर्णित किया है।
राम लौकिक और अलौकिक दोनों हैं, जो भारतीय समाज में एक आदर्श राजा का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो उच्च नैतिक मूल्यों का पालन करते हैं, अपनी पत्नी के प्रति वफादार रहते हैं, और दूसरों की भलाई के लिए त्याग करते हैं।