भोजपुरी अभिनेता पवन सिंह ने बिहार विधानसभा चुनाव से पहले उपेंद्र कुशवाहा और अमित शाह से मुलाकात करके राजनीतिक हलचल मचा दी है, जिससे उनकी बीजेपी में वापसी हो गई है। एनडीए गठबंधन, जो बिहार में लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाया था, अब अभिनेता की वापसी से चुनावी फायदे की उम्मीद कर रहा है।
पवन सिंह की राजनीतिक वापसी से बिहार का चुनावी माहौल गरमा गया है। मंगलवार को, उन्होंने बिहार बीजेपी प्रभारी विनोद तावड़े के साथ उपेंद्र कुशवाहा से मुलाकात की, जहां उन्होंने कुशवाहा का आशीर्वाद लिया।
उपेंद्र कुशवाहा, जो पहले पवन सिंह की वापसी का विरोध कर रहे थे, अब उनके साथ मिलकर काम करने के लिए तैयार दिख रहे हैं, क्योंकि पिछले चुनाव में पवन सिंह की वजह से कुशवाहा चुनाव हार गए थे।
बीजेपी भी पवन सिंह की वापसी को लेकर सतर्क है, खासकर पूर्व केंद्रीय मंत्री आरके सिंह की बगावत के बाद, जिन्होंने पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी थीं। पवन सिंह की वापसी को आरके सिंह के विकल्प के रूप में देखा जा रहा है, और यह राजपूत वोट बैंक को लुभाने की रणनीति भी हो सकती है।
पवन सिंह ने उपेंद्र कुशवाहा से मिलने के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से भी मुलाकात की, जिससे उनकी दूसरी पारी शुरू होने का संकेत मिलता है।
माना जा रहा है कि बीजेपी का यह कदम शाहाबाद और डेहरी-ऑन-सोन की सीटों पर असर डालेगा, जहां सामाजिक समीकरण जटिल हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में, बीजेपी को यहां 11 सीटें मिली थीं। पार्टी का मानना है कि पवन सिंह की लोकप्रियता से 3-4% वोट बढ़ सकते हैं, जो चुनाव में महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं।
आरके सिंह की बगावत के कारण आरा सीट पर संकट पैदा हो गया था। पवन सिंह भी राजपूत समुदाय से आते हैं, और बीजेपी उनकी वापसी को आरके सिंह की बगावत का जवाब और राजपूत वोटों को आकर्षित करने की रणनीति मान रही है।
कुल मिलाकर, पवन सिंह की एनडीए में वापसी ने बिहार चुनाव की राजनीति में नया मोड़ ला दिया है। अब यह देखना होगा कि क्या पवन सिंह का जादू वोटों में बदलेगा और वह एनडीए के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा पाएंगे।