कोलकाता में बिताए गए तीन साल मेरे जीवन के सबसे यादगार रहे, जहाँ मैंने अद्भुत विविधता का अनुभव किया। कोलकाता की दुर्गा पूजा, महिषासुर मर्दिनी के चित्रण के साथ, अद्वितीय है। यहाँ दुर्गा पूजा शारदीय नवरात्रि की षष्ठी से शुरू होती है, जिसमें चार दिन पूजा होती है और दसवें दिन मूर्तियों का विसर्जन होता है, साथ ही सिंदूर खेला भी होता है।
लाल किनारे वाली सफेद साड़ी पर सिंदूर पड़ना बंगाल की संस्कृति का प्रतीक है। षष्ठी की सुबह, दुर्गा पंडालों पर ढाक बजना शुरू हो जाता है और ‘अयि गिरिनंदिनी’ की पूजा शुरू होती है। ढाक, ढोलक की तरह होता है, जिसे खड़े होकर बजाया जाता है। ढाक बजाने वाले कम होते जा रहे हैं, जो केवल दुर्गा पूजा के लिए ही उपलब्ध होते हैं। तबला वादक तन्मय बोस ने ढाक की प्रतिभा को पहचाना और इसे संगीत की मुख्य धारा में लाने का प्रयास किया।
बंगाल में दुर्गा पूजा 16वीं शताब्दी में शुरू हुई, जिसमें ढाक 1757 में शामिल हुआ। दुर्गा का घर-घर में पाठ षष्ठी से शुरू होता है। दुर्गा पूजा बंगाल, असम, बिहार, झारखंड, ओडिशा और दक्षिण के राज्यों में महिषासुर मर्दिनी के रूप में मनाई जाती है, जैसे कि मैसूर में चामुंडेश्वरी देवी मंदिर।
उत्तर प्रदेश में नवरात्रि में राम लीलाएं होती हैं, और महिलाएं दुर्गाअष्टमी को मंदिरों में रतजगा करती हैं। यहां व्रत रखे जाते हैं और कन्या भोज का आयोजन किया जाता है, जिसमें कन्याओं के साथ एक लड़के को भी शामिल किया जाता है, जिसे लंगूर कहते हैं।
शेष हिंदी भाषी राज्यों में भी पूजा इसी विधि से होती है। उत्तर और मध्य भारत में व्रत रखे जाते हैं, क्योंकि मौसम का संधि काल स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण होता है। बंगाली संस्कृति का प्रभाव पूरे देश पर है, और ढाक बजाकर दुर्गा का स्वागत करने की परंपरा बंगाल की संस्कृति का एक हिस्सा है।
दक्षिण भारत में, षष्ठी से दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती का स्वागत करने के लिए घर सजाए जाते हैं, जिसे गोलू-कोलू कहा जाता है। आंध्र और तेलंगाना में इसे बोम्माला कोलू कहा जाता है।
कर्नाटक में दुर्गा पूजा बंगाल की तरह मनाई जाती है, जिसमें षष्ठी को दुर्गा अपने परिवार के साथ आती हैं। केरल में, दशमी को सरस्वती पूजा और आयुध पूजा होती है।
इस प्रकार, पूरे भारत, नेपाल, श्रीलंका, पाकिस्तान और बांग्लादेश में नवरात्रि मनाई जाती है, जो मातृका पूजा का प्रतीक है और आज भी अपनी पूरी महिमा के साथ उपस्थित है। इस वर्ष, 28 सितंबर को महिषासुर मर्दिनी अपने मायके में पधार रही हैं।