अमेरिकी विदेश विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने स्पष्ट किया है कि कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच एक द्विपक्षीय मुद्दा है, और अमेरिका इसमें किसी भी तरह का दबाव डालने में दिलचस्पी नहीं रखता। यह पाकिस्तान के लिए एक निराशाजनक स्थिति है, जो लंबे समय से कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाता रहा है। अधिकारी ने बताया कि अमेरिका इस मामले को भारत और पाकिस्तान पर छोड़ता है, और ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति के तहत दोनों देशों के साथ अपने संबंधों को देखता है। भारत ने हमेशा से इस मुद्दे को द्विपक्षीय रूप से हल करने की वकालत की है, और माना जा रहा है कि यह बयान भारत के प्रयासों का परिणाम है। अधिकारी ने कहा कि अमेरिका भारत और पाकिस्तान को अलग-अलग नजरिये से देखता है, और अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए काम करता है। प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया गया कि राष्ट्रपति ट्रंप के पास कई महत्वपूर्ण मामले हैं जिन पर उन्हें ध्यान देना है, लेकिन अगर मदद मांगी जाती है तो वे सहायता के लिए तैयार हैं। हालांकि, संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने संबोधन के दौरान ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष को कम करने में अपनी भूमिका का दावा किया। विदेश विभाग के अधिकारी ने कहा कि अमेरिका ने युद्धविराम कराने में मदद की थी। भारत हमेशा से चाहता है कि आतंकवाद और कश्मीर जैसे मुद्दों पर पाकिस्तान के साथ बातचीत में किसी तीसरे पक्ष को शामिल न किया जाए, क्योंकि भारत का मानना है कि ये द्विपक्षीय मामले हैं। जबकि अमेरिका ने कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र सहित विभिन्न मंचों पर उठाया है, यह बयान भारत के दृष्टिकोण के अनुरूप है। भारत ने 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के जवाब में 7 मई को ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया था, जिसके बाद पाकिस्तान ने भी जवाबी कार्रवाई की। 10 मई को संघर्ष विराम की घोषणा ट्रंप ने की थी। ट्रंप ने बार-बार दावा किया है कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव को कम करने में मदद की, लेकिन भारत ने इन दावों का खंडन किया है।
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