बिहार चुनाव के संदर्भ में, राहुल और तेजस्वी ने महागठबंधन के अन्य नेताओं के साथ मिलकर अति पिछड़ा न्याय संकल्प की शुरुआत की। इस संकल्प में 10 महत्वपूर्ण बिंदु शामिल थे। हालांकि, अब यही बिंदु सीट बंटवारे में उनकी मुश्किलें बढ़ा सकते हैं। सूत्रों के मुताबिक, मुकेश सहनी, पशुपति पारस और वामपंथी दलों ने कांग्रेस-राजद को यह संकेत देने का फैसला किया है कि नीतीश कुमार ने इस वर्ग को अपना वोट बैंक बनाया है। इसलिए, यदि बिहार में ईबीसी (अत्यंत पिछड़े वर्ग) के 36% वोट बैंक को लुभाना है, तो सीटों और उम्मीदवारों का आवंटन भी उनकी आबादी के अनुपात में होना चाहिए।
वर्तमान स्थिति सिर्फ महागठबंधन की समस्या नहीं है, बल्कि कांग्रेस और राजद के भीतर भी यह चर्चा ज़ोरों पर है कि नीतीश कुमार ने इस वोट बैंक को अपनी ओर करने के लिए जो करना था, वह कर लिया है। महागठबंधन की ओर से इस पर अभी तक केवल घोषणाएं की गई हैं। इसलिए, इस वोट बैंक को लेकर गंभीरता दिखाने के लिए, सीटों के बंटवारे के साथ-साथ उम्मीदवारों के चयन में भी ध्यान देना होगा, तभी सफलता मिल सकती है। नतीजतन, सीट बंटवारे से पहले, महागठबंधन के घटक दलों के साथ-साथ उम्मीदवारों को लेकर कांग्रेस-राजद का ईबीसी कार्ड अब एक चुनौती बनता जा रहा है।
अति पिछड़ा न्याय संकल्प पत्र की 10 मुख्य बातें क्या हैं? राहुल और तेजस्वी ने महागठबंधन के नेताओं के साथ मिलकर अति पिछड़ा न्याय संकल्प पत्र में निम्नलिखित 10 बातें शामिल की हैं: आरक्षण की 50% सीमा बढ़ाने के लिए कानून को 9वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव। पंचायत और नगर निकायों में आरक्षण को 20% से बढ़ाकर 30% करना। सभी निजी कॉलेज और विश्वविद्यालयों में आरक्षण लागू करना। नियुक्तियों में ‘अनुपयुक्त’ जैसी व्यवस्था को समाप्त करना। अति पिछड़े वर्ग की सूची में उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए एक समिति का गठन। एससी/एसटी/ओबीसी/ईबीसी के भूमिहीन निवासियों को जमीन उपलब्ध कराना, शहरी क्षेत्रों में 3 डेसिमल और ग्रामीण क्षेत्रों में 5 डेसिमल जमीन। निजी स्कूलों में आधी आरक्षित सीटें एससी/एसटी/ओबीसी/ईबीसी छात्रों के लिए आरक्षित करना। 25 करोड़ रुपये तक के सरकारी ठेकों में एससी/एसटी/ओबीसी/ईबीसी को 50% आरक्षण देना। अति पिछड़ों के खिलाफ अत्याचार रोकने के लिए कानून बनाना। आरक्षण की निगरानी के लिए एक प्राधिकरण का गठन, और सूची में बदलाव केवल विधानसभा द्वारा किए जाएंगे।