भारतीय वायुसेना की ताकत आने वाले वर्षों में महत्वपूर्ण रूप से बढ़ सकती है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, भारत रूस के पांचवीं पीढ़ी के स्टील्थ फाइटर जेट Su-57E की खरीद पर विचार कर रहा है। इस सौदे में केवल विमान खरीदना ही शामिल नहीं है, बल्कि स्थानीय स्तर पर इनकी असेंबली और संयुक्त रूप से उत्पादन करने की संभावना पर भी चर्चा हो रही है।
**पांचवीं पीढ़ी के विमानों की आवश्यकता**
भारत के पास फिलहाल पांचवीं पीढ़ी का स्टील्थ फाइटर जेट नहीं है। Su-57E इस कमी को पूरा कर सकता है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह विमान रूस की आधुनिक हाइपरसोनिक मिसाइल 3M22 ज़िरकॉन को ले जाने में सक्षम है, जो भारत के लिए एक महत्वपूर्ण हथियार संयोजन साबित हो सकता है।
यह मिसाइल मैक 9 (करीब 9,600 किमी/घंटा) की गति से उड़ान भरती है, जिससे मौजूदा एयर डिफेंस सिस्टम इसे रोक नहीं सकते। इसके अलावा, यह भारत-रूस द्वारा संयुक्त रूप से विकसित ब्रह्मोस मिसाइल को भी ले जाने में सक्षम होगा।
**चीन और पाकिस्तान को चुनौती**
यह सौदा होने पर, भारत को चीन की लंबी दूरी की मारक क्षमता और पाकिस्तान से मिलने वाली हवाई चुनौतियों का प्रभावी जवाब मिलेगा। ज़िरकॉन मिसाइलों से लैस Su-57E वायुसेना को ज़मीन और समुद्र दोनों पर स्थित लक्ष्यों पर सटीक हमला करने की क्षमता प्रदान करेगा।
**HAL के लिए लाभ**
हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) के लिए, यह सौदा आर्थिक और रणनीतिक दोनों दृष्टिकोण से फायदेमंद होगा। रूस ने भारत को पूरी तकनीकी जानकारी, संयुक्त उत्पादन और भारतीय सिस्टम के एकीकरण की पेशकश की है।
* HAL पांचवीं पीढ़ी की स्टील्थ तकनीक और सुपरक्रूज़ क्षमता सीख सकेगा।
* नासिक प्लांट में Su-57E का उत्पादन शुरू हो सकता है, जहाँ पहले से ही Su-30MKI का निर्माण हो रहा है। इससे भारत को इस क्षेत्र में बढ़त मिलेगी।
* सूत्रों के अनुसार, 2030 तक कुछ विमान रूस से आएंगे, जबकि बाकी HAL बनाएगा। इससे भारत की स्क्वाड्रन की कमी को पूरा करने में मदद मिलेगी।
* यह हजारों नौकरियां पैदा करेगा और भारत को भविष्य में इन विमानों के निर्यात का अवसर मिलेगा।
**रणनीतिक और आर्थिक महत्व**
सूत्रों के अनुसार, Su-57E का स्थानीय उत्पादन F-35 जैसे पश्चिमी विमानों की तुलना में सस्ता होगा। HAL ही इसके रखरखाव और उन्नयन का काम करेगा, जिससे लंबे समय तक राजस्व प्राप्त होगा।
**संभावित खतरे**
इस सौदे में कुछ संभावित चुनौतियां भी हैं, जैसे कि CAATSA जैसे अमेरिकी प्रतिबंधों का खतरा, इंजन संबंधी समस्याएं और FGFA परियोजना से जुड़े पुराने मुद्दे। हालांकि, रूस के लचीले रवैये और HAL की मौजूदा क्षमताओं को देखते हुए, इन चुनौतियों का समाधान संभव है।
**हिंद-प्रशांत में भारत की स्थिति**
यदि भारत यह सौदा करता है, तो वह उन देशों में शामिल हो जाएगा जिनके पास हवाई-लॉन्च हाइपरसोनिक हथियार प्रणाली है। इससे न केवल वायुसेना की मारक क्षमता बढ़ेगी, बल्कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की स्थिति मजबूत होगी।