हाल ही में, कतर की राजधानी दोहा में अरब-इस्लामी शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें 57 मुस्लिम देशों के प्रतिनिधि शामिल हुए। यह आयोजन इजराइल द्वारा कथित तौर पर हमास के नेताओं पर हवाई हमले करने के बाद हुआ था, जिसके बाद कतर ने तत्काल बैठक बुलाई।
इस पृष्ठभूमि में, यह सवाल उठता है कि इजराइल इन देशों से क्यों नहीं डरता? इसका एक मुख्य कारण है विभिन्न मुस्लिम देशों के साथ उसके मौजूद समझौते और रणनीतिक हित।
उदाहरण के लिए, अजरबैजान इजराइल को उसकी तेल की जरूरतों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त, यूएई के साथ अब्राहम समझौते ने दोनों देशों के बीच राजनयिक और आर्थिक संबंध स्थापित किए। मिस्र के साथ प्राकृतिक गैस समझौता भी दोनों देशों की ऊर्जा सुरक्षा के लिए आवश्यक है।
सऊदी अरब के लिए, इजराइल की मौजूदगी हूती विद्रोहियों और ईरान के क्षेत्रीय प्रभाव को नियंत्रित करने में सहायक है। तुर्की, आधिकारिक तौर पर संबंधों को निलंबित करने के बावजूद, इजराइल के साथ व्यापार करना जारी रखता है। पाकिस्तान अमेरिका के दबाव और घरेलू राजनीतिक चुनौतियों के कारण इजराइल को मान्यता देने से हिचकिचा रहा है।