जब कश्मीर में धारा 370 को एक दिन में खत्म किया जा सकता है, और बाबरी मस्जिद विवाद का समाधान कुछ महीनों में हो सकता है, तो हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा देने में क्या बाधा है? यह राजनीतिक इच्छाशक्ति का सवाल है। हम राष्ट्रीय ध्वज, चिन्ह, पशु और पक्षी रखते हैं, लेकिन राष्ट्रभाषा नहीं। हिंदी सिर्फ एक भाषा नहीं है, बल्कि हमारे आत्म-सम्मान और पहचान का प्रतीक है। यह पूरे देश को एक सूत्र में बांधती है। हिंदी दिवस मनाने का औचित्य क्या है, जबकि हिंदी हमेशा हमारे साथ है? यह हमारी मातृभाषा है, हमारे विचारों में बहती है, और दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी भाषा है।
इजराइल का उदाहरण: एक मृत भाषा का पुनरुद्धार
इजराइल ने एक मृत भाषा हिब्रू को राजभाषा बनाया। इजराइल 1948 में बना, और हिब्रू उस समय मृत भाषा थी। प्रधानमंत्री डेविड बेन-गुरियन ने हिब्रू को राजभाषा बनाने का संकल्प लिया, और कुछ ही समय में इसे लागू कर दिया गया, साथ ही अरबी को भी मान्यता दी गई। आज, हिब्रू इजराइल की आधिकारिक भाषा है।
मुंशी-आयंगर फॉर्मूला और हिंदी का संघर्ष
भारत में, संविधान सभा में हिंदी को राजभाषा बनाने के पक्ष में वोट पड़े, लेकिन विवाद के बाद, मुंशी-आयंगर फॉर्मूला प्रस्तुत किया गया। इसके तहत हिंदी को संघ की आधिकारिक भाषा और देवनागरी को लिपि के रूप में स्वीकार किया गया, जबकि अंग्रेजी को भी जारी रखने का फैसला किया गया। 78 साल बाद भी हिंदी को राष्ट्रभाषा नहीं बनाया जा सका।
हिंदी के प्रति कवियों और लेखकों की भावनाएँ
कवियों और लेखकों ने हिंदी के प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त किया है। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने हिंदी के विकास को देश की प्रगति से जोड़ा, जबकि मैथिलीशरण गुप्त ने हिंदी को लेकर अपनी पीड़ा व्यक्त की। कबीरदास और रहीम ने लोकभाषा की ताकत को पहचाना।
हिंदी का महत्व और भविष्य
हिंदी देश के एक बड़े हिस्से में संवाद की भाषा है। हिंदी ने सभी भाषाओं को अपनाया है। हिंदी को अखबारों ने फैलाया। हमें हिंदी को गर्व की भाषा बनाना होगा और इसे राष्ट्र की भाषा बनाना होगा। राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है। हिंदी को स्वाभिमान और सम्मान अर्जित करना होगा। हमें हिंदी को भारत की विविधता में एकता स्थापित करने में अग्रणी भूमिका निभानी होगी।