केपी शर्मा ओली के इस्तीफे के बाद, सुशीला कार्की को नेपाल का अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्त करने पर सहमति बनी। राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल और सेना प्रमुख अशोक राज के साथ विचार-विमर्श के बाद, 74 वर्षीय कार्की ने पदभार संभालने से पहले जरूरी मंत्रणा की। उन्हें युवा पीढ़ी (Gen-Z) का समर्थन प्राप्त है। अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में, कार्की चुनाव कराने और व्यवस्था में सुधार लाने का कार्यभार संभालेंगी।
ओली के इस्तीफे के बाद, कुलमान घिसिंग, बालेन साह और दुर्गा प्रसाई जैसे नामों पर भी प्रधानमंत्री पद के लिए विचार किया गया, लेकिन अंततः सुशीला कार्की को चुना गया। सवाल यह उठता है कि कार्की को इस पद के लिए क्यों चुना गया?
**कार्की को कुर्सी कैसे मिली?**
1. **न्यायिक अनुभव:** कार्की सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश रह चुकी हैं। उनके मुकाबले, इस पद के लिए चर्चा में आए किसी भी व्यक्ति के पास इतना उच्च पद का अनुभव नहीं था। कार्की को सिस्टम और सत्ता की गहरी समझ है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में रहते हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ भी आवाज उठाई थी।
2. **भारत के साथ संबंध:** सुशीला कार्की के भारत के साथ अच्छे संबंध रहे हैं। उन्होंने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से शिक्षा प्राप्त की है। प्रधानमंत्री पद के प्रस्ताव पर, उन्होंने तुरंत भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का धन्यवाद किया। भारत, नेपाल का एक महत्वपूर्ण पड़ोसी होने के कारण, नेपाली राजनीति में अहम भूमिका निभाता है।
3. **राजनीतिक तटस्थता:** कार्की किसी भी राजनीतिक दल से जुड़ी नहीं हैं, जिससे उनकी किसी से कोई राजनीतिक दुश्मनी नहीं है। जबकि कुलमान घिसिंग का केपी शर्मा ओली से और बालेन साह का नेपाली कांग्रेस से राजनीतिक विरोध था। अगर इनमें से किसी को चुना जाता, तो संविधान को लेकर विवाद हो सकता था। सेना और राष्ट्रपति ने एक निष्पक्ष विकल्प चुना।
4. **संवैधानिक दृष्टिकोण:** सुशीला कार्की सुप्रीम कोर्ट की चीफ जस्टिस रही हैं। उन्हें अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्त करने से संवैधानिक मामलों को सुलझाने में मदद मिलेगी। नेपाल के संविधान में अंतरिम पीएम का कोई प्रावधान नहीं है। इसलिए, इस मुद्दे के सुप्रीम कोर्ट में जाने की संभावना है। राष्ट्रपति ने एक पूर्व न्यायाधीश को नियुक्त करके संवैधानिक संकट से बचने का प्रयास किया है।