टैरिफ के मुद्दे पर डोनाल्ड ट्रंप की ज़िद भारत और अमेरिका के रिश्तों में खटास लेकर आई है। ट्रंप, जो अक्सर अपनी बातों को लेकर चर्चा में रहते हैं, भारत को टैरिफ बढ़ाने की धमकी दे रहे हैं। इसके साथ ही, उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर कराने का भी श्रेय लेने की कोशिश की है। ट्रंप चाहते हैं कि भारत टैरिफ के मुद्दे पर झुक जाए और सीजफायर को लेकर उनकी बातों का समर्थन करे। हालांकि, भारत ने ट्रंप की इन बातों का समर्थन नहीं किया है, जिसके कारण अमेरिकी राष्ट्रपति नाराज़ हैं। दुनिया ने इस घटनाक्रम में देखा कि ट्रंप किस तरह से बयानबाजी करते हैं, जबकि प्रधानमंत्री मोदी ने इस मामले में परिपक्वता दिखाई।
ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल में भारत के प्रति अपना रवैया बदल लिया है। फरवरी तक, उनके रिश्ते बेहतर थे, खासकर जब पीएम मोदी से उनकी मुलाकात हुई थी। उस समय, ट्रंप ने कई वादे किए थे, यहां तक कि बांग्लादेश का भविष्य भी पीएम मोदी को सौंप दिया था। लेकिन समय के साथ, दोनों देशों के बीच संबंध बिगड़ते गए, और इसके लिए ट्रंप को ही ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है।
अमेरिकी राष्ट्रपति लगातार बयान देते रहे हैं। रूस से तेल खरीदने के कारण, उन्होंने भारत पर टैरिफ 50% तक बढ़ा दिया है। वे अक्सर अपनी उपलब्धियों का बखान करते हैं, और नोबेल पुरस्कार पाने के लिए युद्ध रोकने का दावा करते हैं। जबकि पाकिस्तान ने उनकी प्रशंसा की, भारत उनकी बात मानने को तैयार नहीं है।
इन सब कदमों से ट्रंप ने भारत-अमेरिका संबंधों को नुकसान पहुंचाया है। उनके अपने देश के कई नेता इस नुकसान को कम करने की कोशिश कर रहे हैं। हाल ही में, जब ट्रंप ने सर्जियो गोर को भारत में अमेरिकी राजदूत नियुक्त किया, तो सीनेटर मार्क रुबियो ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट किया, जिसमें भारत के महत्व को रेखांकित किया गया।
रुबियो ने कहा कि वे सर्जियो गोर को भारत में राजदूत के रूप में नामित करने के राष्ट्रपति के फैसले से उत्साहित हैं, जो दुनिया में हमारे सबसे महत्वपूर्ण रिश्तों में से एक में अमेरिका का प्रतिनिधित्व करेंगे। इससे पहले, संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका की पूर्व राजदूत निक्की हेली ने ट्रंप को चेतावनी दी थी, जिसमें कहा गया था कि भारत और अमेरिका के संबंध एक नाजुक मोड़ पर हैं। उन्होंने कहा कि रूस से तेल खरीदने और टैरिफ विवाद को दोनों देशों के बीच स्थायी दरार का कारण नहीं बनना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रपति ट्रंप और प्रधानमंत्री मोदी के बीच सीधी बातचीत होनी चाहिए, अन्यथा चीन इस स्थिति का लाभ उठा सकता है।
ट्रंप की बयानबाजी के विपरीत, पीएम मोदी ने संयम बनाए रखा है। उन्होंने टैरिफ के मुद्दे पर अमेरिका को कई बार जवाब दिया, लेकिन हमेशा भारत के राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता दी। पीएम मोदी ने संतुलित भाषा का इस्तेमाल किया और अमेरिका को यह स्पष्ट कर दिया कि भारत अपने फैसले राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए लेगा। उन्होंने किसानों से कहा कि उनकी सरकार उनके हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।
पीएम मोदी जहां एक ओर देश के लोगों को यह संदेश दे रहे हैं कि उनकी सरकार अमेरिका के सामने झुक नहीं रही है, वहीं उनकी सरकार के अन्य सदस्य भी अमेरिका को स्पष्ट संदेश दे रहे हैं। पीयूष गोयल से लेकर विदेश मंत्री एस जयशंकर तक, सभी ने ट्रंप को समय-समय पर कड़े जवाब दिए हैं। पीयूष गोयल ने कहा कि भारत किसी के सामने नहीं झुकेगा, जबकि जयशंकर ने व्यापार पर स्पष्ट संदेश देते हुए कहा कि अगर अमेरिका को यह पसंद नहीं है, तो वह भारत से खरीददारी न करे।
भारत ने अमेरिका को स्पष्ट कर दिया है कि वह अपनी विदेश नीति खुद तय करेगा। रूस और चीन के साथ संबंध कैसे बनाए जाएं, यह ट्रंप के हाथ में नहीं है। अमेरिका के साथ संबंधों में तनाव आने के बाद से, भारत ने चीन के साथ अपने संबंधों को मजबूत किया है और रूस के साथ दोस्ती बढ़ाई है। सरकार के मंत्री चीन और रूस की यात्राएं कर रहे हैं, लेकिन अमेरिका को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं। पीएम मोदी भी चीन जाने वाले हैं, और पुतिन भारत आने वाले हैं। ये सभी कदम अमेरिका को एक स्पष्ट संदेश दे रहे हैं: भारत अब अमेरिका पर निर्भर नहीं रहेगा।