पाकिस्तान में शहबाज शरीफ की सरकार ने एक विवादास्पद कदम उठाया है जिसके खिलाफ विपक्ष और मानवाधिकार संगठन विरोध कर रहे हैं। सरकार ने आतंकवाद विरोधी संशोधन विधेयक पारित किया है, जिसके तहत सेना और सुरक्षा एजेंसियों को किसी भी व्यक्ति को बिना किसी सुनवाई के तीन महीने तक हिरासत में रखने का अधिकार मिल गया है। इस फैसले को लेकर आलोचकों का कहना है कि यह पाकिस्तान को फिर से सैन्य शासन की ओर ले जा रहा है, और वर्तमान सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर के लिए सत्ता हासिल करने का रास्ता खोल रहा है। नया कानून पुराने आतंकवाद विरोधी कानून में संशोधन करता है, जिसके तहत किसी भी व्यक्ति को खुफिया जानकारी या संदेह के आधार पर तीन महीने तक हिरासत में लिया जा सकता है। गिरफ्तार करने का अधिकार सेना या अर्धसैनिक बलों को होगा, और मामले की जांच एक संयुक्त जांच दल (JIT) द्वारा की जाएगी, जिसमें पुलिस, खुफिया एजेंसियां और सेना शामिल होंगी। यह कानून तीन साल तक प्रभावी रहेगा, जिसे संसद आगे बढ़ा सकती है। विपक्षी दलों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का मानना है कि यह कानून मानवाधिकारों का उल्लंघन है और इसका उपयोग सरकार के विरोधियों को दबाने के लिए किया जाएगा। सरकार का कहना है कि यह कानून केवल विशेष परिस्थितियों में लागू होगा और गिरफ्तार व्यक्ति को 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाएगा। हालांकि, मानवाधिकार संगठन इस बात को लेकर चिंतित हैं कि क्या सेना और अन्य सुरक्षा एजेंसियां इन शर्तों का पालन करेंगी, खासकर उस देश में जहां सेना का प्रभाव हमेशा से रहा है। 1999 में, परवेज मुशर्रफ ने तख्तापलट किया था और लोकतांत्रिक सरकार को हटा दिया था। आलोचकों का मानना है कि नया कानून जनरल आसिम मुनीर को अधिक शक्ति देगा, और इसका असली उद्देश्य आतंकवाद से लड़ना नहीं बल्कि सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत करना है।
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