संसद का मानसून सत्र इस बार काफी हंगामेदार रहा, जिसके कारण जनता के करोड़ों रुपये बर्बाद हुए। लोकसभा में जहां 120 घंटे चर्चा होनी थी, वहां केवल 37 घंटे ही कामकाज हो सका, जबकि 83 घंटे बर्बाद हो गए। राज्यसभा में भी 47 घंटे ही काम हो पाया और 73 घंटे बर्बाद हुए। लोकसभा में केवल 31% और राज्यसभा में 38% ही काम हुआ। 21 जुलाई से 21 अगस्त तक चले इस सत्र में आतंकवाद, ऑपरेशन सिंदूर और अंतरिक्ष कार्यक्रम जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा हुई।
लोकसभा में 12 और राज्यसभा में 14 बिल पास हुए, कुल मिलाकर 15 विधेयक पारित किए गए। स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन के मुद्दे पर दोनों सदनों में भारी हंगामा हुआ, साथ ही ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा के दौरान भी यही स्थिति रही। इस हंगामे की वजह से जनता के लगभग 200 करोड़ रुपये बर्बाद हो गए।
मानसून सत्र के दौरान लोकसभा में 14 सरकारी विधेयक और कुल 12 विधेयक पास हुए। लोकसभा में 419 प्रश्नों में से केवल 55 के ही मौखिक उत्तर दिए गए, जबकि राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान 285 सवालों में से केवल 14 सवाल ही पूछे जा सके। हंगामे के कारण शून्यकाल और विशेष उल्लेख भी बाधित हुए।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर लोकसभा में 18 घंटे 41 मिनट और राज्यसभा में 16 घंटे 25 मिनट तक चर्चा चली, जो पहलगाम में आतंकी हमले के जवाब में की गई थी।
संसद में चर्चा पर भारी खर्च होता है। 2012 में एक मिनट की चर्चा का खर्च लगभग 2.5 लाख रुपये था, जिससे एक घंटे की कार्यवाही पर लगभग 1.5 करोड़ रुपये खर्च होते थे। यह खर्च अब और भी बढ़ गया होगा, और यह पैसा सीधे जनता के टैक्स से आता है।
लोकसभा में कई महत्वपूर्ण बिल पास हुए, जिनमें गोवा राज्य के विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में अनुसूचित जनजातियों के प्रतिनिधित्व का पुनर्समायोजन विधेयक, मर्चेंट शिपिंग बिल, मणिपुर माल और सेवा कर (संशोधन) विधेयक, और राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक शामिल हैं। राज्यसभा में भी इसी तरह के विधेयक पारित किए गए।