मशहूर गीतकार जावेद अख्तर ने अपने पिता, जान निसार अख्तर की पुण्यतिथि पर उनके बारे में खुलकर बात की। उन्होंने बताया कि उनके पिता ने कैसे उनमें छिपे कवि को पहचाना और उन्हें लिखने के लिए प्रेरित किया। जावेद ने अपने पिता के कुछ बेहतरीन गानों का ज़िक्र किया, जैसे ‘ऐ दिल-ए-नादाँ’ और ‘ये दिल उनकी और निगाहों के साये’। उन्होंने बताया कि उनके पिता फ़िल्मों के लिए ज़्यादा काम इसलिए नहीं कर पाए क्योंकि उन्हें फ़िल्म इंडस्ट्री में अपनी कविता बेचने का तरीक़ा नहीं पता था।
जावेद अख्तर ने अपने पिता के पुराने ज़माने के तौर-तरीक़ों पर भी बात की, जो विनम्र, आत्म-सम्मान वाले और किसी से काम मांगने में हिचकिचाते थे। उन्होंने बताया कि उनके पिता के साथ उनके रिश्ते पहले कुछ ख़राब रहे, लेकिन बाद में कविता के ज़रिए वे करीब आए। जावेद ने कहा कि उनके पिता ने 18 साल की उम्र में उनकी कविता को पहचाना और उन्हें लिखने के लिए प्रेरित किया।
जावेद अख्तर ने बताया कि उनके पिता उर्दू को आम लोगों तक पहुँचाना चाहते थे और इसीलिए उन्होंने सरल भाषा का इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा कि उन्हें अपने पिता से सादगी से लिखने का तरीक़ा विरासत में मिला है। जावेद अख्तर ने यह भी ज़िक्र किया कि वह अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं और उनकी कविताओं को प्रकाशित करने की योजना बना रहे हैं।