आजकल की फिल्मों में दोस्ती और दुश्मनी को कुछ ज्यादा ही भुनाया जा रहा है। दो सुपरस्टार्स को एक साथ पर्दे पर देखना हमेशा रोमांचक होता है। ऋतिक रोशन, जो अपनी हर अदा से दर्शकों को दीवाना बना लेते हैं, और साउथ के ‘यंग टाइगर’ जूनियर एनटीआर, जिनकी एंट्री पर थिएटर तालियों से गूंज उठता है। इन दोनों को एक साथ लाने की घोषणा से ही दर्शकों की उम्मीदें बहुत बढ़ गई थीं। लेकिन क्या ‘वॉर 2’ उन उम्मीदों पर खरी उतरी? आइए, इस समीक्षा में फिल्म की पूरी कहानी जानते हैं।
फिल्म की कहानी की बात करें तो, भारत के सबसे बेहतरीन एजेंट मेजर कबीर धालीवाल (ऋतिक रोशन) अचानक गायब हो जाते हैं। अब उनकी वापसी होती है, लेकिन इस बार वो देश के खिलाफ सबसे खतरनाक चाल चल रहे हैं। उन्हें रोकने के लिए, सरकार अपने सबसे जांबाज ऑफिसर विक्रम (जूनियर एनटीआर) को भेजती है। विक्रम का भी एक अतीत है, जो उसके मिशन की तरह रहस्य से भरा है। इस मिशन में विक्रम का साथ काव्या थापर (कियारा आडवाणी) देती हैं, जिसका मकसद सिर्फ देश को बचाना नहीं, बल्कि कुछ और भी है। कबीर अचानक देश का दुश्मन कैसे बन गया? विक्रम और काव्या उसे रोक पाएंगे? यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।
फिल्म में ऋतिक रोशन एक धमाकेदार एक्शन सीन के साथ एंट्री करते हैं, उनका स्वैग देखने लायक है। लेकिन शुरुआत के बाद कहानी की रफ्तार धीमी हो जाती है। ‘वॉर 2’ में वही पुरानी कहानी और अंदाज है, जो हम पहले भी कई जासूसी फिल्मों में देख चुके हैं। ऐसा लगता है, जैसे किसी ने पुरानी स्क्रिप्ट से कुछ हिस्से काट कर जोड़ दिए हों। आज के दौर में, जहां ओटीटी पर वेब सीरीज़ के जरिए हमें भारतीय रॉ और खुफिया एजेंट्स की कहानी को रियलिस्टिक रूप में देखने की आदत हो गई है, वहां ‘वॉर 2’ की कहानी फीकी लगती है।
अयान मुखर्जी ने फिल्म का निर्देशन किया है। ‘ब्रह्मास्त्र’ जैसी फिल्में बनाने के बाद उनसे उम्मीद थी कि वह इस जासूसी यूनिवर्स में कुछ नयापन लाएंगे, लेकिन वो उम्मीद पूरी नहीं हुई। उनके निर्देशन में वो नयापन और ताजगी नजर नहीं आती, जिसकी उम्मीद थी। फिल्म में कई जगह ऐसा लगता है, जैसे डायरेक्टर ने सिर्फ ऋतिक और जूनियर एनटीआर के स्टारडम पर भरोसा किया, न कि कहानी को मजबूत बनाने पर। एक्शन थ्रिलर को बेहतर बनाने की बहुत कोशिश की गई, लेकिन वो हताश करते हैं। फिल्म के कई हिस्से इललॉजिकल लगते हैं, तो कहीं जबरदस्ती लंबा खींचे हुए महसूस होते हैं।
एक्टिंग की बात करें तो, ऋतिक रोशन अपनी पुरानी फॉर्म में वापस आए हैं। उनका लुक, स्वैग और स्क्रीन पर उनकी मौजूदगी कमाल की है। कबीर के रूप में वो हमेशा की तरह एकदम फिट बैठते हैं। जूनियर एनटीआर के किरदार की बात करें, तो यहां निराशा हाथ लगती है। उनकी स्टाइलिंग से लेकर उनके किरदार की बनावट तक, सब कुछ अधूरा सा लगता है। एनटीआर जैसे दमदार एक्टर के लिए ये किरदार बहुत कमजोर तरह से पेश किया गया है।
कियारा आडवाणी भी ठीक ठाक हैं, लेकिन उनका रोल गाने और लव-सीन्स तक सीमित है। अनिल कपूर का किरदार भी अधूरा सा लगता है।
फिल्म में फाइट और एक्शन सीक्वेंस अच्छे हैं। बैकग्राउंड स्कोर भी कमाल का है। फिल्म के गाने ठीक-ठाक हैं।
अगर आप ऋतिक रोशन और जूनियर एनटीआर के फैन हैं, तो ये फिल्म देख सकते हैं। इन दोनों को एक साथ स्क्रीन पर देखना ही अपने आप में एक अलग मजा है। कुल मिलाकर ये फिल्म एक ऐसे सपने की तरह है, जिसे दिखाने के लिए पायलट ने उड़ान भरी, पर बीच में रास्ता ही भटक गया।