झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक, जिन्हें आदिवासी समुदाय ‘दिशोम गुरु’ (राष्ट्र के गुरु) के नाम से जानते थे, शिबू सोरेन का निधन हो गया है। वह एक महीने से अधिक समय से बीमार थे और जून के अंत से किडनी की बीमारी का इलाज करवा रहे थे। 2 अगस्त को उनकी हालत बिगड़ने पर उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया। झारखंड के राजनीतिक और आदिवासी क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति, उन्होंने आदिवासी समुदायों के उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उनका राजनीतिक सफर संथाल सुधार समाज के साथ शुरू हुआ और उन्होंने धनबाद के तुंडी में एक आश्रम स्थापित किया, जहां उन्होंने आदिवासियों को महाजनी व्यवस्था के तहत शोषण करने वाले साहूकारों और जमींदारों के खिलाफ एकजुट किया। इससे झारखंड के मूल निवासियों के लिए एक परिवर्तनकारी आंदोलन शुरू हुआ। उनके नेतृत्व ने आदिवासी समुदायों में नई उम्मीद जगाई, लेकिन सोरेन का करियर विवादों से भी भरा रहा। उनके उल्लेखनीय राजनीतिक जीवन और संघर्षों पर एक नज़र:
प्रारंभिक जीवन और सक्रियता
शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को हजारीबाग (अब झारखंड) के नेमहरा गाँव में एक संथाल आदिवासी परिवार में हुआ था। उनके पिता, सोमलंग सोरेन, एक स्कूल शिक्षक थे जिनकी 1960 के दशक में हत्या कर दी गई, जिससे शिबू ने आदिवासी अधिकारों और न्याय के लिए जीवन भर संघर्ष करने का संकल्प लिया।
1960 के दशक के अंत तक, उन्होंने संथाल सुधार समाज की स्थापना की और धनबाद के तुंडी में एक आश्रम बनाया। उन्होंने आदिवासियों के खिलाफ हो रहे संस्थागत भेदभाव और उपेक्षा के खिलाफ भी लड़ाई लड़ी।
उन्होंने आदिवासी भूमि वापस लेने के लिए कई आंदोलन किए, जिनके कारण हिंसक झड़पें भी हुईं। उन पर हिंसा भड़काने के आरोप लगे, हालाँकि उन्हें 2008 और 2010 में इन आरोपों से बरी कर दिया गया।
झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) और झारखंड का निर्माण
1972 में, शिबू सोरेन, बिनोद बिहारी महतो और ए.के. रॉय ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना की, जिसने बाद में बिहार से अलग होकर एक अलग राज्य बनाने के लिए झारखंड आंदोलन का नेतृत्व किया। यह लक्ष्य 2000 में हासिल हुआ। शुरुआत में, यह संथाल, कुर्मी और मार्क्सवादी समूहों का एक गठबंधन था, जिसका उद्देश्य आदिवासी भूमि अधिकारों की रक्षा करना, सांस्कृतिक विरासत को सुरक्षित रखना और जमींदारों और साहूकारों के शोषण को समाप्त करना था।
सोरेन का राजनीतिक करियर
शिबू सोरेन ने 1971 में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के महासचिव के रूप में राजनीति में प्रवेश किया। उन्होंने कई चुनाव जीते और झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में तीन बार सेवा की।
JMM ने 1980 से चुनाव लड़ना शुरू किया, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) जैसी पार्टियों के साथ गठबंधन किया। इसने बिहार विधानसभा चुनावों में कुछ सीटें जीतीं और झारखंड बनने के बाद 2005 के राज्य चुनावों में 17 सीटें जीतीं, जिसके परिणामस्वरूप शिबू सोरेन के नेतृत्व में एक संक्षिप्त गठबंधन सरकार बनी।
शिबू सोरेन की राजनीतिक यात्रा: मुख्य पड़ाव
* 1980: दुमका से 7वीं लोकसभा के लिए चुने गए।
* 1986: JMM के अध्यक्ष बने।
* 1989–1996: 9वीं, 10वीं और 11वीं लोकसभा के लिए फिर से चुने गए।
* 1998–2001: राज्यसभा सांसद।
* 2002–2004: 13वीं और 14वीं लोकसभा के लिए फिर से चुने गए, मई 2004 में कोयला और खान मंत्री बने।
* मार्च 2005: झारखंड के मुख्यमंत्री बने, लेकिन बहुमत की कमी के कारण 10 दिन में इस्तीफा दे दिया।
* 2006: केंद्रीय मंत्रिमंडल में फिर से शामिल हुए, 1994 के हत्या मामले में दोषी पाए जाने के बाद इस्तीफा दिया।
* 2007: दुमका में उन पर हमला हुआ, लेकिन वे बच गए।
* अगस्त 2008 – जनवरी 2009: फिर से मुख्यमंत्री बने, विधानसभा चुनाव हारने के बाद इस्तीफा दिया।
* 2009–2014: 15वीं लोकसभा में जीते; विभिन्न संसदीय समितियों में शामिल हुए।
* 2010: तीसरी बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने, भाजपा के समर्थन वापस लेने के बाद इस्तीफा दिया।
* 2014: दुमका से 16वीं लोकसभा सीट जीती।
* 2019: भाजपा के सुनील सोरेन से हारे।
* 2020: राज्यसभा सदस्य के रूप में शपथ ली।
विवाद
शिबू सोरेन ने अपने राजनीतिक करियर में कई चुनाव जीते, लेकिन उनके करियर में कुछ गिरावट भी आई। उन पर 1974 और 1975 में हुई घटनाओं में हिंसा भड़काने का आरोप लगा, हालाँकि उन्हें बाद में बरी कर दिया गया।
2006 में, उन पर उनके निजी सचिव शशिनाथ झा के अपहरण और हत्या का आरोप लगा, जिसके लिए उन्हें दोषी ठहराया गया। इस घटना के कारण उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा और जेल जाना पड़ा। बाद में दिल्ली उच्च न्यायालय ने उन्हें बरी कर दिया। इन अदालती मामलों और राजनीतिक अस्थिरता ने उनके शासनकाल में बाधा डाली।